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रूह-ब-रूह

संतों के स्तर पर कोई भेद नहीं है

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संत भावना रामानुजम

फरीदाबाद। वृंदावन स्थित यशोदानंदन धाम से फरीदाबाद में कथा करने पहुंची भावना रामानुजम से भेंट में कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि वह किसी एक संप्रदाय की आचार्य हैं। कहीं कोई कट्टरता का भाव नहीं बल्कि सभी के लिए एक समभाव दिखा, जो आजकल कम ही संतों में दिखता है। कहती हैं कि संतों के स्तर पर कोई भेद नहीं है, भक्त आपस में इतनी दूरी क्यों रखते हैं, समझ से परे है।

संत भावना रामानुजम ने वर्षों तक चंडीगढ़ पंचकूला में रहते हुए छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां करवाईं। इसी दौरान उन्हें मध्व गौडीय संप्रदाय के महान विद्वान अतुल कृष्ण जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। जिसने उनके जीवन को अध्यात्म मार्ग पर मोड़ दिया।
वह राम कथा, भागवत कथा, शिव कथा के साथ साथ विभिन्न चैप्टर पर भी प्रवचन कहती हैं। दक्षिण के रामानुज संप्रदाय में दीक्षित और बाद में संप्रदाय के अनंतश्री विभूषित जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी चतुर्भुज दास जी महाराज के साथ दांपत्य जीवन में आईं भावना रामानुजम के अंदर धार्मिक अथवा सांप्रदायिक कट्टरता के स्थान पर सभी के लिए समभाव ही नजर आता है।
रामानुज संप्रदाय में शिव की पूजा नहीं होती है के प्रश्र पर कहती हैं, जब व्यक्ति भक्तिपथ में प्रवेश कर जाता है तो उसे कोई छोटा बड़ा, अपना पराया नजर नहीं आता है। ब्रह्म दो नहीं हो सकते हैं तो हम दो कैसे हो सकते हैं। भगवान राम जब रावण का वध करने जाते हैं तो पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना अर्चना करते हैं, इसी प्रकार जब कृष्ण कंस का वध करने निकलते हैं तो वृंदावन में गोपेश्वर महादेव की स्थापना करते हैं।
हालांकि भावना रामानुजम कहती हैं कि कुछ तो बदलाव संतों में भी आया है। पहले उनके लिए अध्यात्म निष्ठा का विषय था अब प्रतिष्ठा का हो गया है, पहले भाव प्रधान था अब प्रभाव प्रधान हो गया है, पहले संत फकीरी में रहता था अब अमीरी में रहता है। लेकिन यह छुपा नहीं रह सकता है। भक्तों को सब दिख जाता है। आचरण ही व्यक्ति का आइना है। संत के पास जो होगा, वही भक्त को देगा। जो होगा ही नहीं, वह क्या देगा।
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