रूह-ब-रूह
खट्टर को पंजाबी कहने में झिझक- चौधरी
हरियाणा प्रदेश में तीन तीन मुख्यमंत्रियों के साथ कैबिनेट साझा करने वाले और सूबे के पंजाबियों के नेता ए सी चौधरी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पंजाबी कहने में झिझकते है| उन्होंने आज whitemirchi.com से ढेर सारी बातें साझा की जो आने वाले समय में आपके सामने होंगी|
प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश-
हरियाणा में पंजाबियों को नेतृत्व के बारे?
पूर्व मंत्री एसी चौधरी प्रदेश में पंजाबियों की आन बान और शान माने जाते हैं। वह अनेक मोर्चों पर पंजाबियों की मांग रखने के लिए पार्टी प्लेटफॉर्म से अलग मंचों का भी प्रयोग करते रहे हैं। उनकी लंबे समय से मांग रही है कि प्रदेश में 33 प्रतिशत पंजाबियों को नेतृत्व मिलना चाहिए।
अब भाजपा सरकार में पंजाबी समुदाय के मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री बनने पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो चौधरी साहब बोले, मुझे तो सीएम को पंजाबी कहने में झिझक होती है। बकौल चौधरी, सीएम बनने के बाद जब मनोहर लाल जी पहली बार अपने कार्यालय पहुंचे तो अपने नाम पट्ट को देखकर भडक़ गए। उन्होंने सेके्रटरी स्तर के अधिकारी से कहा कि किसने यह पट्टी लगाई है। इसे बदलो। मेरे नाम के पीछे लगा खट्टर हटाओ। तभी आनन फानन में नई पट्टी बनवाई गई, जिस पर केवल मनोहर लाल खट्टर लिखा गया।
चौधरी कहते हैं कि सीएम खुद को पूरे प्रदेश का सीएम बताने से नहीं चूकते, लेकिन जो आदमी अपनी कौम को भूल जाता है, समझ लो उसका क्या होता है।
नोटबंदी के विरोध में बंद क्यों बना रोष प्रदर्शन?
आज पूरे देश में जेडीयू छोडक़र समूचे विपक्ष द्वारा केंद्र सरकार की नोटबंदी के विरोध में बंद का आह्वान किया गया था। जाहिर सी बात है कि इसमें कांग्रेस भी शामिल थी। लेकिन आज अचानक सभी कांग्रेसी बंद से पहले इसे रोष प्रदर्शन प्रचारित करने लगे।
जब पूर्व मंत्री एसी चौधरी से पूछा गया कि यह बंद अचानक रोष प्रदर्शन में कैसे तब्दील हो गया। चौधरी साहब बोले, हम नहीं चाहते कि पहले से नुकसान झेल रहे हमारे लोग और नुकसान झेलें, इसलिए हमने बाजार बंद न करवाकर, केवल रोष जुलूस निकालने की योजना बनाई। बातों ही बातों में चौधरी साहब ने यह भी बता दिया कि उन्होंने रोष से संभावित लोगों की परेशानियों को देखते हुए पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पीए से मंत्रणा की थी। हालांकि उन्होंने यह बदलाव का आदेश कहां से आया, इस पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत आ गई है?
पूर्व मंत्री एसी चौधरी से पूछा गया कि राहुल गांधी कोई करिश्मा नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठ रही है, बल्कि कुछ नेता तो गांधी परिवार से बाहर नेतृत्व तलाशने के मचल रहे हैं।
वो बोले, मैंने 40 साल पहले फ्रेंड्स सोशल वेलफेयर सोसाइटी बनाई थी, लेकिन राजनीति में आने के बाद उस संस्था का पद छोड़ दिया। पर संस्था के पदाधिकारी आज भी उनकी रजामंदी के बिना कोई काम नहीं करते हैं। यह कोई दबाव नहीं है बल्कि उनके द्वारा दिया जाने वाला सम्मान है। इसी प्रकार जब हम नेहरू गांधी परिवार की बात करते हैं तो यह भी देखते हैं कि यह ऐसा परिवार है जिसने देश के लिए कुर्बानियां दीं। लोग नेहरू गांधी परिवार में आस्था और विश्वास रखते हैं कि यह देश को नुकसान नहीं होने देंगे। लेकिन यह बात वो आधा निक्कर पहनने वाले नहीं समझेंगे क्योंकि उनकी ब्रिटिशों के साथ संबंधों के बारे में सब वाकिफ हैं।