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बचल खुचल

सीटीओ एंजियोप्लास्टी स्टेंटिंग से बाईपास सर्जरी से बचाव संभव : डा. बंसल

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डा. बंसल ने बताया कि हृदय में क्रिटिकल ब्लॉकेज के कारण मरीज़ की हृदय के पंप करने की क्षमता बहुत धीमी हो गयी थी, जो केवल 30 प्रतिशत रह गई थी, जब हृदय में इस तरह के जटिल ब्लॉक होते हैं, तो मरीजों को अक्सर बाईपास सर्जरी के लिए कहा जाता है।

एसएसबी अस्पताल ने काम्प्लेक्स एंजियोप्लास्टी के जरिए मरीज को दिया नया जीवन
फरीदाबाद। चिकित्सा क्षेत्र में अग्रणीय एसएसबी अस्पताल के डाक्टरों ने काम्प्लेक्स एंजियोप्लास्टी के जरिए मरीज को नया जीवन दिया है। मरीज की हालत इतनी गंभीर थी कि उसे बाईपास सर्जरी की जरूरत थी परंतु अस्पताल के डाक्टरों की कुशलता के चलते उसकी सीटीओ एंजियोप्लास्टी की गई, जिससे उसे नया जीवन मिला। अस्पताल के निदेशक एवं वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एस.एस. बंसल ने बताया कि 62 वर्षीय रमेश सिंह लम्बे अरसे से छाती में दर्द तथा सांस फूलने की शिकायत से पीडि़त थे। उन्हें एसएसबी अस्पताल में एनजाइना के दर्द की शिकायत की वजह से भर्ती कराया गया। मरीज़ की एंजियोग्राफी की गई, जिसमें उनके हृदय की तीन धमनियों में से दो धमनियां में पुराने ब्लॉक्स थे जो बहुत सख्त तथा कैल्शियम युक्त थे। मरीज़ को ह्रदय की तीसरी आर्टरी में पहले से स्टंट डला हुआ था। डा. बंसल ने बताया कि हृदय में क्रिटिकल ब्लॉकेज के कारण मरीज़ की हृदय के पंप करने की क्षमता बहुत धीमी हो गयी थी, जो केवल 30 प्रतिशत रह गई थी, जब हृदय में इस तरह के जटिल ब्लॉक होते हैं, तो मरीजों को अक्सर बाईपास सर्जरी के लिए कहा जाता है। ऐसे मामलों में एंजियोप्लास्टी बेहद मुश्किल है और इसके लिए डॉक्टर का अनुभवी होना बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे जटिल ब्लॉकेज के लिए विश्व के अनुभवी से अनुभवी डॉक्टर भी फेमोरल आर्टरी से ही एंजियोप्लास्टी करते है परन्तु इस केस में मरीज़ की फेमोरल आर्टरी पूरी तरह से ब्लॉक थी, जिसकी वजह से फेमोरल आर्टरी से एंजियोप्लास्टी करना संभव नहीं था । ऐसे जटिल ब्लॉकेज में रेडियल रूट यानि कलाई की धमनी से एंजियोप्लास्टी करना बेहद चनौतीपूर्ण था इसीलिए मरीज़ के सख्त ब्लॉक्स को खोलने के लिए उन्होंने सीटीओ वायर्स एवं माइक्रो कॅथेटर्स का उपयोग कर हाथ की धमनी से मरीज़ की सफल एंजियोप्लास्टी की। डा. एस.एस. बंसल ने बताया कि आधुनिक तकनीक एवं अपने 28 वर्षों के अनुभव से मरीज़ की रेडियल आर्टरी से एंजियोप्लास्टी कर बाईपास सर्जरी की संभावनाओं को दूर कर दिया। उन्होंने बताया कि यह सफलता उन हृदय रोगियों के लिए उम्मीद पैदा करती है जो पहले से ही गंभीर बिमारियों से ग्रसित है या फिर जो मरीज़ बाईपास सर्जरी नहीं करवाना चाहतें है। सीटीओ जैसे जटिल ब्लॉकेज का इलाज़ पहले बाईपास सर्जरी के द्वारा किया जाता था, परन्तु नई तकनीक एवं डॉक्टर के अनुभव से ऐसे जटिल ब्लॉक्स को रेडियल आर्टरी के द्वारा खोल कर उस ब्लॉक में स्टेंटिंग करना संभव है। यह तकनीक मरीज़ों के लिए एक वरदान है। डा. बंसल ने बताया कि उन्होंने फरीदाबाद में पहली बार रेडियल एंजियोग्राफी 15 साल पहले शुरू की थी और हम ऐसे कई जटिल केस कर हज़ारों मरीज़ों की बाईपास सर्जरी की संभावनाओं को दूर कर पाये। उन्होंने बताया कि कलाई के माध्यम से डबल जटिल सीटीओ ब्लॉकेज को सफलतापूर्वक खोलना बहुत कठिन है और यह फरीदाबाद शहर का पहला केस है जिसे हम सफलतापूर्वक कर पाये है। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य है कि लोगों को वाजिब दामों पर उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाए और इसी उद्देश्य को लेकर वह और उनके साथी डाक्टर प्रयासरत है। भविष्य में भी वह चिकित्सा क्षेत्र में ऐसी आधुनिक पद्धतियां अपनाएंगे, जिससे शहर के लोगों को उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधा के लिए बाहर नहीं पड़ेगा।

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गंभीर बीमारियों से बचा सकता है संतुलित खानपान : डा. लुबिना 

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फरीदाबाद। संतुलित खानपान के साथ-साथ अगर ठीक से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाए तो मनुष्य न सिर्फ अपने आपको गंभीर बीमारियों से दूर ही रख पाएगा बल्कि गंभीर बीमारियों से ग्रसित होने पर अपना जीवन बचा सकता है। गंभीर बीमारियों के उपचार में आज की तारीख में होम्योपैथी उपचार भी कारगर सिद्ध हो रहा है। गंभीर बीमारियों से ग्रसित लाखों मरीजों को बीमारी से छुटकारा दिलाने वाली डॉक्टर लुबिना कमाल का ऐसा मानना है। 

डा. कमाल ह्यूमन एस्टिटेंस फाउंडेशन द्वारा के.एल. मेहता दयानंद महिला कॉलेज में आयोजित स्वास्थ्य जागरूकता सेमीनार में उपस्थित शहरवासियों को सम्बोधित कर रही थीं। सेमिनार में प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री एसी चौधरी बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। सेमिनार की अध्यक्षता दयानंद शिक्षण संस्थान के चेयरमैन डा. आनन्द मेहता ने की। डा. लुबिना कमाल के उपचार से डायलिसिस से छुटकारा पाने वाले महंत कैलाश नाथ हठयोगी भी विशेष रूप से सेमिनार में मौजूद थे।
गंभीर बीमारियों व उसके उपचार पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए डा. लुबिना कमाल ने बताया कि प्रकृति में प्रत्येक रोग से बचाव का साधन छुपा हुआ है। सूर्य की किरण हमें मुफ्त में मिलती है और अगर प्रत्येक व्यक्ति नियमित रूप से सूर्य का प्रकाश ग्रहण करता है तो शरीर में कई प्रकाश के विटामिन की पूर्ति स्वत: हो जाती है, जिससे गंभीर बीमारियों से बचाव संभव है। ठीक इसी प्रकार नियमित योग से भी अपने आपको स्वस्थ रख सकते हैं।
मनुष्य को अपने आहार में पांच दालें, पांच फल व पांच हरी सब्जियां अवश्य शामिल करनी चाहिए। फलों की जहां तक बात है तो जरूरी नहीं की महंगा सेब ही खाया जाए। अमरूद जैसा सस्ता फल भी हमारी पाचन क्रिया को दुरूस्त रखने के साथ-साथ विटामिन की भी पूर्ति करता है। उन्होंने खास कर अभिभावकों से आह्वान किया कि वह अपने बच्चों को तनाव से दूर रखें और उनके साथ दोस्ताना व्यवहार करें। बच्चों को जंक फूड से दूर रखें तथा प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं का सेवन कराए। साथ ही उन्होंने सलाह दी कि व्यक्ति को पेन किलर का उपयोग कम से कम करना चाहिए क्योंकि पेन किलर के नियमित उपयोग से किडनी डैमेज होती है। उन्होंने कहा कि होम्योपैथिक एक ऐसी स्वस्थ पद्धति है लाईलाज बिमारियों का ईलाज भी संभव है।
पूर्व मंत्री एसी चौधरी ने कहा कि उनकी संस्था फ्रैंन्डस वेलफेयर सोसायटी सामाजिक कार्यों में हमेशा बढ़-चढक़र शिरकत करती है डाक्टर लुबिना कमाल द्वारा आम आदमी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में भरपूर सहयोग करेगी।
के.एल. मेहता दयानंद शिक्षण संस्थान के चेयरमैन डा. आनन्द मेहता ने कहा कि संस्था शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। 

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जिज्ञासु ने किताब में दर्द जमा किए हैं – रणबीर सिंह

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दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ रणबीर सिंह ने किया पूर्व आयकर अधिकारी के काव्य का विमोचन

फरीदाबाद।
काव्य जीवन जलधि के मोती वास्तव में जीवन के दर्दों का संग्रह है। जो हमारा ध्यान बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। यह सभी को अवश्य ही पढऩी चाहिए। यह बात दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ रणबीर सिंह ने कही। वह यहां होटल राजहंस में पूर्व आयकर अधिकारी हुकम सिंह दहिया जिज्ञासु के काव्य का विमोचन करने पहुंचे थे।
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सिंह ने युवाओं से अपील की कि बेशक आज आपके पास अनेक साधन मौजूद हों लेकिन आप साहित्य अवश्य ही पढें। यह जीवन सिखाते हैं। श्री सिंह ने कहा कि इस पुस्तक को चार प्रमुख भागों में बांटा गया है, जिनमें लेखक की फिक्र, सोच, अहसास और इरादे साफ साफ नजर आते हैं। यह पुस्तक हमें एक उम्मीद बांधती है कि हम अपनी रोशनी खुद बन सकते हैं। इसमें एक बेहतर भविष्य की रचना की गई है, जिसमें पुराने बंधन दिखाई नहीं देते। वास्तव में पुस्तक में संग्रहित लेखक के मसले आज सबके मसले हैं। बता दें कि श्री सिंह लेखक के भतीजे भी लगते हैं। इसलिए वह पूरे संबोधन में लेखक को चाचा ही बोलते रहे। उन्होंने चाचा भतीजे की नजदीकियों का भी जिक्र किया।


पुस्तक की समीक्षा मशहूर शायर एवं कवि ज्योति संग ने की। उन्होंने कहा कि जिज्ञासु ने पुस्तक में भावनाओं और संवेदनाओं को संयोजित किया है। उन्होंने पुस्तक को महाकाव्य कहे जाने की संस्तुति की। अधिवक्ता आर के मल्होत्रा ने कहा कि लेखक मेरे मित्र हैं, लेकिन आज उनकी रचना को पढक़र मैं उनके प्रति और संवेदनशील हो गया हूं। उन्होंने पुस्तक में मन, ईश्वर और प्रकृति के बारे में अपनी राय लिखी है जो आज के समय में बेहद जरूरी है।
लेखक हुकम सिंह दहिया जिज्ञासु ने काव्य की अपनी कुछ चुनिंदा पंक्तियों को गाकर प्रस्तुत किया। जिसे सभी ने सराहा। उन्होंने बताया कि उनकी पुस्तक अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है। कार्यक्रम में कवि राजेश खुशदिल और कवि एस एन भारद्वाज ने भी अपनी रचनाओं से लोगों की वाहवाही लूटी। वहीं संचालन कवि श्रीचंद भंवर ने व संयोजन लेखक के पुत्र एवं गुजरात कैडर के आईएएस अजय दहिया ने किया।
इस अवसर पर पूर्व आयकर अधिकारी रामदत्त शर्मा, डीडीए के पूर्व उपनिदेशक प्रेम सिंह दहिया, कर्मचंद आदि प्रमुख व्यक्ति मौजूद रहे।

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जिंदगी जीने के लिए शादी का टैग जरूरी है?

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हम लोग बचपन से यह सुनते आये हैं कि हमारे घर में लव मैरिज हुई, अर्रेंज हुई| देखने में यह भी मिलता है कि खुद प्यार करके शादी करने वाले भी शिकायत लिए घुमते हैं और परिवार की मर्जी से अर्रेंज मेर्रिज करने वाले भी यही करते हैं|
अरेंज शादी मामले में यदि कुछ अनबन होती है तो दोनों परिवार के लोगों से शिकायत करते हैं वहीँ लव मेर्रिज वाले मामले में कोई अनबन हो जाये तो परिवार वाले ताना मारते हैं कि भाई अपनी मर्जी से की थी, अब खुद ही सम्भालो|
लिव इन वालों को तो कोई इज्जत से देखते ही नहीं हैं| उन्हें समाज ने मान्यता नहीं दी है|
मुद्दे की बात क्या है?
आप यह बताइये शादी करने के बाद होता क्या है| नई-नई जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं| घर-परिवार को संभालना, बच्चे पैदा करना वंश बढ़ाना आदि|
तो जरा यह बात सोचिए कि क्या यह सब शादी करे बिना यह सब नहीं हो सकता है| बिना शादी करे 1 ही इंसान के साथ रहे, जिंदगी बसाये, परिवार को संभाले, जिम्मेदारियां संभाले, वंश आगे बढ़ाये लेकिन बिना किसी दबाव, मजबूरी के|
शायद यह समय की मांग है कि ऐसा उदाहरण पेश किया जाये  जिसमें कोई बंधन न हो लेकिन फिर भी बंधन ही कहलाये| ज्यादातर लोग यह पूछते हैं कि भाई तुम्हारी लव मेर्रिज थी या अर्रंज| लेकिन तुम यह बोलो, न अर्रेंज थी, न लव| लेकिन उससे भी खुशहाल, आनंदमय, सुखमय, सबसे बड़ी बात बिना किसी दबाव के जिंदगी जी रहे हैं|
लोगों के सामने 1 ऐसा उदाहरण बनायें कि आप यह कह सकें कि हम बंधन में हैं लेकिन साथ निभा नहीं रहे हैं, जी रहे हैं|
आप भी सोचिये कि क्या साथ रहने के लिए प्यार से 1 ही जीवनसाथी के साथ रहने के लिए जिंदगी में किसी टैग का होना इतना जरूरी है?
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