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नगरिकता विधेयक पारित होना ऐतिहासिक

फरीदाबाद। नागरिकता विधेयक का संसद के दोनों सदन से पारित होना एक ऐतिहासिक घटना है। इस विधेयक द्वारा नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन किया गया है ताकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के लोगों को आसानी से भारत की नागरिकता मिल सके। किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल यहां रहना अनिवार्य है। इस नियम को आसान बनाकर इन लोगों के लिए नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 5 साल कर दिया गया है। यानी इन तीनों देशों के छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। नागरिकता कानून, 1955 के मुताबिक अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती थी। उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है जो वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के बगैर आए हों या वैध दस्तावेज के साथ तो आए लेकिन अवधि से ज्यादा समय तक रुक जाएं। अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने साल 2015 और 2016 में 1946 और 1920 के इन कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को छूट दे दी है। आज ये वैध दस्तावेजों के बगैर भी रह रहे हैं और उनको नागरिकता के लिए अब किसी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं है। विरोध नहीं होता तो नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 में ही पारित हो जाता। 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास कर दिया गया लेकिन राज्यसभा में पारित हो नहीं सकता था। राजनीतिक पक्ष-विपक्ष से अलग होकर विचार करें तो इस विधेयक को विभाजन के समय आए शरणार्थियों की निरंतरता के रुप देखे जाने की जरुरत थी। किंतु राजनीति जो न करे। कई प्रकार की गलतफहमी पैदा करने की कोशिश हुई। विरोध का एक बड़ा मुद्दा है, इसमें मुस्लिम समुदाय को अलग रखना। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश तीनों इस्लामिक गणराज्य यानी मजहबी देश हैं। पाकिस्तान में शिया, सुन्नी, अहमदिया की समस्या इस्लाम के अंदर का संघर्ष है। वस्तुतः वहां उत्पीड़न दूसरे धर्म के लोगों का है। दूसरे, मुसलमान को भारत की नागरिकता का निषेध नहीं है। कोई भी भारत की नागरिकता कानून के तहत आवेदन कर सकता है और अर्हता पूरी होने पर नागरिकता मिल सकती है। जैसा गृह मंत्री अमीत शाह ने बताया पिछले पांच वर्ष में इन देशों के 566 से ज्यादा मुसलमानों के नागरिकता दी भी गई है। यह तर्क भी हास्यास्पद है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की बात करता है। इसमें कौन सी समानता का उल्लंघन है? तब तो इसके पहले जहां से जहां से लोग आए और नागरिकता दी गई वो सब असंवैधानिक हो जाएगा। अनुच्छेद 14 उचित वर्गीकरण की बात करता है और किसी एक समुदाय को नागरिकता दी जाती तो शायद इसका उल्लंघन होता। चौथे, यह कहा जा रहा है कि इससे भारत पर भार बढ़ेगा और नागरिकता के लिए बाढ़ आ जाएगी। निस्संदेह, इस कानून के बाद उत्पीड़ित वर्ग भारत आना चाहेंगे। पर इस समय तो ये भारत में वर्षों से रह रहे हैं। अलग से भार बढ़ने की समस्या नहीं है। इसे लेकर सबसे ज्यादा विरोध पूर्वोत्तर में दिखाई पड़ रहा है। हालांकि सिक्किम को छोड़कर सभी सांसदों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया। क्यों? क्योंकि उनकी ज्यादातर आशंकाओं को निराकरण किया है। पूर्वाेत्तर क्षेत्र में यह आशंका पैदा करने की कोशिश हो रही है कि अगर नागरिकता संशोधन लागू हो गया तो तो पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा। यह व्यवस्था पूरे देश के लिए बनी है केवल पूर्वोत्तर के लिए नहीं। अमित शाह द्वारा मणिपुर को इनरलाइन परमिट (आईएलपी) के तहत लाने की घोषणा के बाद पूर्वाेत्तर के तीन राज्य अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और मणिपुर पूरी तरह से नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के दायरे से बाहर हो गए। शेष तीन राज्य- नागालैंड (दीमापुर को छोड़कर जहां आईएलपी लागू नहीं है), मेघालय (शिलॉन्ग को छोड़कर) और त्रिपुरा (गैर आदिवासी इलाकों को छोड़कर जो संविधान की छठी अनुसूची में शामिल नहीं हैं) को प्रावधानों से छूट मिली है। असम को लें तो छठी अनुसूची के तहत आने वाले तीन आदिवासी इलाकों (बीटीसी, कर्बी-अंगलोंग और दीमा हसाओ) के अलावा यह असम के सभी हिस्सों पर लागू होगा। इन आदिवासी इलाकों पर स्वायत्त जिला परिषदों का शासन है। तो स्थानीय संस्कृति, परंपरा तथा स्थानीय निवासियों के अधिकारों पर अतिक्रमण की आशंकाओं को खत्म करने के ठोस प्रावधान हैं। असम में इस कानून से केवल दो लाख लोगों को लाभ होगा। गृहमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि जो इलाके बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत आते हैं उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि विधेयक वहां लागू नहीं होगा। यह विधेयक अचानक नहीं लाया गया। जैसे हमने उपर याद दिलाया कि पिछली सरकार में भी इसे पारित कराने की कोशिश हुई थी। 2019 के आम चुनाव के घोषणा पत्र में भाजपा ने नागरिकता कानून बनाने का वायदा किया था। वैसे सरकार के कदमों पर ध्यान दें तो वह लगातार इस दिशा में आगे बढ़ रही थी। सरकार ने उन्हें अनेक वैसी सुविधाएं दी जाने की घोषणा कर दी थी जो नागरिकों को प्राप्त है। पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों को कुछ शर्तों के साथ संपत्ति खरीदने, पैन व आधार कार्ड बनवाने और बैंक खाता खुलवाने की अनुमति मिली। यही नहीं उन्हें राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कहीं भी आने जाने की छूट मिल गई। जैसा हम जानते हैं पाकिस्तान से आने वालों पर आम पाकिस्तानी नागरिकों की तरह एक ही जगह रहने की बाध्यता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने सितंबर 2015 में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू-सिख शरणार्थियों को वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी भारत में रुकने की अनुमति दी थी। ये सुविधा उन लोगों को दी गई थी जो 31 दिसंबर 2014 को या इससे पहले भारत आ चुके थे। इस तरह एक क्रमबद्ध प्रक्रिया चल रही थी। वसतुतः इसे सांप्रदायिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। वहां हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसियों एवं विभाजन पूर्व भारत का नागरिक रह चुके ईसाइयों पर जुल्म होगा तो वे अपनी रक्षा और शरण के लिए किस देश की ओर देखेंगे? विभाजन के बाद वे वहां रह गए या गए तो उसके पीछे कई कारण रहे होंगे। धार्मिक कट्टरता के कारण उनके लिए अपनी धर्म-संस्कृति एवं परंपराओं का पालन करते हुए रहना संभव हीं रहा। या तो वे मुसलमान बन जाएं या फिर उनके साथ तरह-तरह की यातनायें। वास्तव में 1947 में शरणार्थी के रुप में पाकिस्तान से आने वाले हिन्दुओं एवं सिख्खों को जिस तरह स्वाभाविक नागरिकता मिल गई उसी व्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए इनको भी स्वीकार किया जाना चाहिए था। विभाजन के समय अल्पसंख्यकों की संख्या पाकिस्तान में 22 प्रतिशत के आसपास थी जो आज तीन प्रतिशत है। बांग्लादेश की 23 प्रतिशत आबादी 8 प्रतिशत से कम रह गई है। कहां गए वे? या तो मुसलमान बना दिए गए, मार दिए गए या फिर भाग गए। वहां जिस तरह के अत्याचार अल्पसंख्यकों पर होने आरंभ हुए वे अकल्पनीय थे। इससे अनुसूचित जाति के अनेक नेताओं, जिनने मुस्लिम लीग के साथ दोस्तीगांठकर पाकिस्तान का रुख किया था को आठ-आठ आंसू बहाना पड़ा। जब उनके धार्मिक उत्पीड़न की खबर आने लगी तो गांधी जी ने 4 नवंबर 1947 को बयान दिया कि सभी हरिजनों को भारत ले आओ। 1950 में प. जवाहर लाल नेहरु और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच दिल्ली समझौता हुआ जिसमें दोनों देशों ने अपने यहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, उनका धर्म परिवर्तरन नहीं करने से लेकर सभी प्रकार का नागरिक अधिकार देने का वचन दिया। इस समझौते के बाद पाकिस्तान के अल्पसंख्यक वहां के प्रशासन की दया पर निर्भर हो गए। धार्मिक भेदभाव और जुल्म की इंतिहा हो गई। शत्रु संपत्ति कानून का दुरुपयोग करते हुए संपत्तियों पर जबरन कब्जा सामान्य बात हो गई और इसके खिलाफ शिकायत के लिए कोई जगह नहीं। अत्याचार, संपत्ति लूटने, महिलाओं की आबरु लूटने, धर्म परिवर्तन कर निकाह करने की खबरे आतीं रहीं, लेकिन भारत ने कभी प्रभावी हस्तक्षेप करने का साहस नहीं दिखाया जो उसकी जिम्मेवारी थी। पूर्वी पाकिस्तान में वर्तमान पाकिस्तान की सेना ने जिन हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार किया, उनकी निर्ममता से हत्याएं कीं उनमें हिन्दुओं की ही संख्या ज्यादा थीं। अफगानिस्तान में कट्टरपंथी तालिबानी शासन और उसके बाद संघर्ष में धार्मिक उत्पीड़न के कारण उनकी भी चिंता की गई है। सच कहा जाए तो उनको नागरिकता देकर भारत अपने पूर्व के अपराधों का परिमार्जन करेगा जिनके कारण कई करोड़ या तो धर्म परिवर्तन की त्रासदी झेलने को विवश हो गए या फिर भारत की मदद की आस में उत्पीड़न- अत्याचार सहते चल बसे। इस कानून के द्वारा एक इतिहास के एक नए अध्याय का निर्माण हुआ है जिसमें आने वाले समय में कई ऐसे पन्ने जुड़ेंगे जो अनेक परिवर्तनों के वाहक बनेंगे।
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नगर निगम ने फरीदाबाद शहर को बना दिया कूड़े का ढेर – जसवंत पवार

वैसे तो फरीदाबाद शहर को अब स्मार्ट सीटी का दर्जा प्राप्त हो चूका है, परन्तु शहर के सड़कों पर गंदगी के ढेर फरीदाबाद प्रशासन और नगर को आइना दिखा रहे हैं
शहर के अलग अलग मुख्य चौराहों और सड़कों पर पढ़े कूड़े के ढेर को लेकर समाज सेवी जसवंत पवार ने फरीदाबाद प्रशासन और नगर निगम कमिश्नर से पूछा है कि एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी कहते हैं कि स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत मुहिम को पूरे देश में चला रहे हैं वही नगर निगम इस पर पानी फेरता दिख रहे हैं फरीदाबाद में आज सड़कों पर देखे तो गंदगी के ढेर लगे हुए हैं पूरे शहर को इन्होंने गंदगी का ढेर बना दिया है। जिसके चलते फरीदाबाद शहर अभी तक एक बार भी स्वछता सर्वेक्षण में अपनी कोई अहम् भूमिका अदा नहीं कर पा रहा, अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारा फरीदाबाद शहर स्वच्छता सर्वे में फिर से फिसड्डी आएगा। साल 2021 में स्वछता सर्वेक्षण 1 मार्च से 28 मार्च तक किया जाना है जिसको लेकर लगता नहीं की जिला प्रसाशन व फरीदाबाद के नेता और मंत्री फरीदाबाद शहर की स्वछता को लेकर बिल्कुल भी चिंतित दिखाई नहीं पढ़ते है।
जसवन्त पंवार ने फरीदाबाद वासियों से अनुरोध और निवेदन किया है अगर हमें अपना शहर स्वच्छ और सुंदर बनाना है तो हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे जहां पर भी गंदगी के ढेर हैं आप वीडियो बनाएं सेल्फी ले फोटो खींचे और नेताओं और प्रशासन तक उसे पहुंचाएं, हमें जागरूक होना होगा तभी जाकर यह फरीदाबाद शहर हमारा स्वच्छ बन पाएगा। आप हमें इस नंबर पर वीडियो और फोटो भेज सकते हैं
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क्यों हर दो महीने में आता है बिजली का बिल?

हम सभी अपने कुछ रोजमर्रा में प्रयोग होने वाली चीजों के बिलों का भुगतान हर महीने करते हैं। जैसे बैकों की किश्तंे, घर का किराया इत्यादि। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर फरमाया है कि जब हर चीज का भुगतान हम महीने दर महीने करते हैं। तो बिजली के बिल का ही भुगतान हर दो महीने में क्यों?
इस पर बिजली निगम का कहना है कि बिलिंग प्रक्रिया से जुड़ी एक लागत होती है। जिसमें मीटर रीड़िंग की लागत, कम्प्यूटरीकृत प्रणाली में रीडिंग फीड़ करने की लागत, बिल जेनरेशन की लागत, प्रिंटिग और बिलों को वितरित करने की लागत आदि चीजें शामिल होती हैं। इन लागतों को कम करने के लिए बिलिंग की जाती हैं। इसलिए बिजली बिल 2 महीने में आता है।
फिलहाल बिजली निगम 0-50 यूनिट तक 1.45 रूपये प्रति यूनिट, 51-100 यूनिट तक 2.60 रूपये प्रति यूनिट चार्ज करता है।
आप यह अनुमान लगाइए कि यदि किसी छोटे परिवार की यूनिट 50 से कम आती है। तो उसका चार्ज 1.45 रूपये प्रति यूनिट होगा लेकिन जब बिल दो महीने में जारी होगा। तो उसका 100 यूनिट से उपर बिल आएगा। मतलब साफ है कि उसे प्रति यूनिट चार्ज 2.60 रूपये देना होगा । ऐसे में उस गरीब को सरकार की छूट का लाभ नहीं मिला लेकिन सरकार ने पूरी वाह-वाही लूट ली।
आप यह बताइए जिस घर में सदस्य कम है। तो उस घर की बिजली खपत भी कम होगी और बिल भी कम ही आएगा। मतलब साफ है उपयोग कम तो यूनिट भी कम। यदि बिजली बिल एक महीने में आता है तभी ही तो जनता को इसका लाभ मिलेगा।
लेकिन चूंकि बिल दो महीने में आता है इसलिए गरीब को या छोटे परिवार को महंगी बिजली प्रयोग करनी पड़ रही है।
एक तरफ बिजली निगम अपना फायदा देख रहा है। तो दूसरी तरफ सरकार सस्ती बिजली की घोषणा करके, एक राजनीतिक मुद्द्ा बना कर, जनता की वाह-वाही लूट रही है। लेकिन जनता को लाभ मिल ही नहीं रहा क्योंकि सरकार तो दो महीने में लोगों को बिल दे रही हैं। इसलिए जब महीने में एक बार बिल आएगा तभी आम जनता को लाभ प्राप्त होगा। सरकार कब तक जनता को अपने घोषणाओं के जाल में फंसाती रहेगी? कब जनता को अपनी दी हुई पूंजी का सही लाभ प्राप्त होगा?
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क्यों राहुल गांधी बिना किसी बात के भी फंस जाते हैं?

आई ए एस अधिकारी टीना डाबी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर सोशल मीडिया में ट्रोल हो गए हैं। खबर बस इतनी है कि दलित समाज से आने वाली टीना मुस्लिम समाज से आने वाले अपने पति अतहर से तलाक ले रहीं हैं।
दिल्ली शहर की रहने वाली 24 वर्षीय टीना डाबी जो 2015 की सिविल परीक्षा में टाॅप करके आई ए एस अधिकारी बनी थी। उन्होंने कश्मीर के मटट्न नामक शहर में रहने वाले अतहर खान से शादी कर ली जो उसी परीक्षा में दूसरे स्थान पर था।
टीना पहली दलित महिला थी जिसने यूपीएससी की परीक्षा में टाॅप किया था।
टीना और अतहर की शादीशुदा जोड़ी को उनके विवाह के दौरान जय भीम और जय मीम की एकता, मुस्लमान और दलितों के बीच में सबधों की मिसाल बताया गया था। उस समय राहुल गांधी ने स्वंय अपने ट्वीटर अकांउट से ट्वीट करते हुए कहा था कि ये जोड़ी मिसाल कायम करेगी। यह हिंदू, मुस्लमानों की एकता का प्रतीक है।
लेकिन आपसी मतभेदों के कारण जयपुर के पारिवारिक न्यायालय में इस जोड़ी ने तलाक की अर्जी दाखिल की है। अब ये जोड़ी तलाक ले रही हैं और लोग राहुल गांधी को लानत दे रहे हैं ‘दिख गई सहजता। दिखा लिया भाईचारा।।‘
आज कांग्रेस की जो हालत है या राहुल गांधी की जो हालत है वो इस वजह से है क्योंकि राहुल ने हर मुद्दे में केवल जाति व धर्म का एंगल खोजा और उसका तुष्टीकरण किया। उन्होंने सर्व समाज से बातें करने में हमेशा परहेज किया। केवल धर्म और जातियों में खास दृष्टिकोण खोजते रहे।
अब तक देखने में आया है कि घटना किसी दलित के साथ हुई है तो वह एक्शन लंेगे और यदि वह दलित कांग्रेस शासित राज्य में है तो एक्शन नहीं लेंगे। उसी प्रकार कोई घटना मुस्लिम के साथ है तो वह आवाज उठाएंगे और यदि वह मुस्लिम अपने शासित राज्य में है तो वो आवाज दबा दंेगे।
इसी कारण से कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि लोग उन्हें धर्म और जाति का मुद्दा उठते ही लोग लानत देने लगते हैं।
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