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हुर्रियत के खिलाफ सबसे बड़ी कार्रवाई

अवधेश कुमार
हुर्रियत नेताओं पर जिस तरह का कानूनी शिकंजा अभी कसा गया है वैसा इनके खिलाफ कभी नहीं हुआ। हुर्रियत कॉन्फ्रंेस के महासचिव शब्बीर शाह तो प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्त में आए ही हैं, सात अलगाववादी नेताओं को राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने गिरफ्तार किया है, कुछ नेताओं की आगे गिरफ्तारी हो सकती है। एनआईए ने सैयद अली शाह गिलानी के पुत्रों से भी पूछताछ करने की घोषणा कर दी है तथा 48 आदतन पत्थरबाजों की पहचान की है जिन्हें कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हाल के महीनों में कश्मीर में हिंसा और अशांति के समानांतर केन्द्र सरकार ने एनआईए एवं अन्य एजेंसियों को इनके पीछे की ताकतों की ठीक से पहचान कर उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की हरि झंडी दे दी थी। बिना सरकार की खुली छूट के इतनी बड़ी कार्रवाई संभव नहीं थी। जिस ढंग से कार्रवाई चल रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि हुर्रियत नेताओं के अलगाववाद का हीरो बनने के दिन जाने वाले हैं और उनके बुरे दिन आ गए हैं। अभी तक वे हिरासत में लिए जाते या गिरफ्तार होते थे छूटते थे। यह उनके लिए एक सामान्य क्रम जैसा हो गया था। सभी मान चुके थे कि वो चाहे जितना देश विरोध हरकत करें, पाकिस्तान के एजेंडा को लागू करने का जूर्म करें उनका कोई सरकार कुछ बिगाड़ नहीं सकती। लग रहा है उनका यह मुगालता अब खत्म होने वाला है।
शब्बीर शाह को हवाला के जिस मामले में गिरफ्तार किया है वह 2005 का है। अभी लगता है कि यह मामला हवाला तक ही सीमित रहेगा। ऐसा नहीं है। हवाला से धन क्यों लिया और किससे लिया इन्हीं दो प्रश्नों में आगे की कार्रवाई निहित है। आपने यदि कश्मीर में अशांति और तोड़फोड़ के लिए पाकिस्तान का धन हवाला के जरिए लिया तो फिर यह केवल हवाला का मामला नहीं रह जाता आतंकवाद का भी मामला हो जाता है। इसलिए यह संभव है इनका मामला आने वाले समय में एनआईए को भी मिले। तो थोड़ा इंतजार करिए। लेकिन जिन सात नेताओं की गिरफ्तारी एनआई ने की है उन पर आरोप ही अवैध तरीके से धन लेकर आतकवाद के वित्तपोषण करने का है। इनमें जिन नेताओं की गिरफ्तारी हुई उनके बारे में जानकारी न होने से पहली नजर में लगता है कि ये शायद अत्यंत साधारण एवं निचले स्तर के कार्यकर्ता होंगे। ऐसा नहीं है। बिट्टा कराटे, नईम खान, अल्ताफ अहमद शाह (अल्ताफ फंटूश), अयाज अकबर, टी. सैफुल्लाह, मेराज कलवल और शहीद-उल-इस्लाम सभी खूंखार नाम हैं। बिट्टा कराटे एक समय बड़ा आतंकवादी और यासिन मलिक का साथी था। आज भी यासिन मलिक के संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट में उसका दाहिना हाथ है। अल्ताफ हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक धड़े के प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी का दामाद हैं। अयाज अकबर भी सैयद अली शाह गिलानी का करीबी है तथा तहरीक-ए-हुर्रियत का प्रवक्ता भी हैं। शहीद-उल-इस्लाम भी मीरवाइज उमर फारुख वाले हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के धड़े का प्रवक्ता है। इसलिए ये मत मान लीजिए कि एनआईए ने कुछ छोटे-मोटे कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई की है। एनआईए ने यूं ही इन्हें गिरफ्तार भी नहीं किया है। जब से आतंकवाद के वित्तपोषण या पत्थरबाजों को धन देने का मामला सामने आया, उसकी जांच आरंभ हुई एवं एनआईए का हाथ इन तक पहुंचा। मई महीने के अंत में एनआईए ने नईम खान, गाजी जावेद बाबा और बिट्टा कराटे को दिल्ली बुलाकार पूछताछ की थी। पता नहंी पूछताछ में उन्होंने क्या कहा। खबर यह आई कि उन्होंने पाकिस्तान से धन आने की बात मानी थी। मई में ही एनआईए ने तहरीक-ए-हुर्रियत के नेता बाबा और कराटे से श्रीनगर में लगातार 4 दिनों तक पूछताछ की थी। उनसे कश्मीर में हिंसा के लिए हवाला से धन आने संबंधी प्रश्न किए गए थे। एनआईए ने प्राथमिकी में जो आरोप इन पर लगए हैं उनमें कश्मीर में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, स्कूलों और अन्य सरकारी संस्थानों को जलाने, पत्थरबाजों से हमले करवाने सहित अन्य विध्वंसक गतिविधियों के लिए लश्कर ए तैयबा के प्रमख हाफिज सईद, अन्य आतंकवादी संगठनों एवं आइएसआइ से धन मिलने की बात है।
एक न्यूज चैनल ने भी 16 मई को स्टिंग ऑपरेशन प्रसारित किया था। हुर्रियत नेता नईम खान को स्टिंग ऑपरेशन में लश्कर से पैसे लेने की बात कबूल करते दिखाया गया था। खान रिपोर्टर से यह कहते नजर आए थे कि पाकिस्तान से आने वाला पैसा सैकड़ों करोड़ से ज्यादा है, लेकिन हम और ज्यादा की उम्मीद करते हैं। हालांकि बाद में खान ने स्टिंग को फर्जी करार दिया था। ध्यान रखिए एनआइए ने 19 मई को ही मामला दर्ज किया था। उसके बाद 3 जून को देश में 24 जगहों कश्मीर में 14, दिल्ली में 8 और हरियाणा के सोनीपत में 2 जगहों पर छापे मारे गए थे। जिनके ठिकानों पर छापे मारे गए उनमें गिलानी के दामाद अल्ताफ फंटू्श, बिजनेसमैन जहूर वटाली, अवामी एक्शन कमेटी के नेता शाहिद-उल-इस्लाम, नईम खान, राजा कालवाल और दिल्ली में ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 में रहने वाले ड्राई फ्रूट व्यापारी मानव अरोड़ा आदि शामिल हैं। इनके घरों, कार्यालयों के अलावा उनके वाणिज्यिक ठिकानों पर भी छापेमारी हुई। दिल्ली में 8 हवाला करोबारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई थी। कश्मीर में छापेमारी के दौरान 2 करोड़ रुपए और अवैध संपत्तियों से जुड़े कागजात जब्त किए जाने की बात सामने आई थी। साथ ही लश्करे-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के लेटरहेड्स, लैपटॉप, पेन-ड्राइव्स भी मिले थे।
वस्तुतः पिछले वर्ष आठ जुलाई को आतंकवादी बुरहान वानी के मुठभेड़ में मरे जाने के बाद घाटी में पथराव और हिंसा के मामलों में काफी बढ़ोत्तरी हुई थी। इसकी विस्तृत जांच की गई और निष्कर्ष में जो तथ्य आए उसके आधार पर आगे की कार्रवाई हो रही है। एनआइए को अलगाववादी नेताओं और जांच में घेरे में रहे आदतन पत्थरबाज 4 दर्जन कश्मीरी युवाओं के बीच बातचीत के ठोस सबूत मिले हैं। टेलिफोन पर हुई बातचीत से पता चलता है कि कुल 48 आदतन पत्थरबाज स्थानीय हुर्रियत नेताओं के संपर्क में थे और ये नेता भी इस दौरान बड़े अलगाववादी नेताओं के संपर्क में थे। जांच में आतंकवादी फंडिंग के मॉड्यूल का भी पता चला है। बड़े अलगाववादी नेता स्थानीय नेताओं को फंड देते थे। इसके बाद, ये नेता पत्थरबाजी और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए युवाओं को पैसे देते थे। पत्थरबाजी वाली जगहों पर ऐक्टिव रहे फोन नंबरों की जांच करने पर पता चलता है कि इनका इस्तेमाल सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ में बाधा डालने के लिए किया गया। एनआइए ने अपनी जांच में पाया है कि सभी घटनाओं में कुछ सामान्य लोग ही शामिल थे। कुछ ऐसे लोग भी थे, जो अलग-अलग आठ जगह हुई घटनाओं के दौरान मौजूद थे। पुलवामा, अनंतनाग, बड़गाम, कुलगाम, त्राल, अवंतिपुरा, शोपियां और बारामूला जैसी जगहों पर मौजूद रहे युवाओं की जांच करने के बाद एनआइए ने 48 आदतन पत्थरबाजों की सूची तैयार की। इनके खिलाफ भी कार्रवाई आरंभ होगी। एनआईए के पास इन पत्थरबाजों के नाम, मोबाइल नंबर, वर्तमान पता, ट्रू कॉलर पहचान आदि की पूरी जानकारी है। छानबीन की जो जानकारी बाहर आई है उसके अनुसार बुरहान के अंत के बाद घाटी में संगठित तरीके से भीड़ के जरिए हिंसक वारदात को अंजाम दिया गया।
एनआइए की अब तक की गई जांच निष्कर्ष का अर्थ यह है कि 1990 के दशक के खूंखार आतंकवादी अब नई भूमिका में हैं। वस्तुतः1990 के दशक में हिज्बुल मुजाहिदीन और अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़कर आतंकवाद फैलाने वाले बहुत से लोग अब कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के लिए वित्त मुहैया कराने वाले नेटवर्क का हिस्सा बन गए हैं। हालांकि पहली बार यह सामने नहीं आया है। इसका प्रमाण 2011 में तब मिला जब एनआइए ने सैयद अली शाह गिलानी के कानूनी सलाहकार गुलाम मोहम्मद बट को गिरफ्तार किया था। याद करिए 2010 में कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों और पत्थरबाजी का कितना भयानक दौर चला था। उस दौरान ही यह स्पष्ट हुआ था कि बट को 2009 से जनवरी 2011 के बीच पाकिस्तान से दो करोड़ रुपये से अधिक की रकम हवाला के जरिए मिली थी। उस दौरान जितनी कड़ाई से मामला बनना चाहिए था नहीं बना, फिर भी सुनवाई अभी चल रही है। इसका एक बड़ा उदाहरण मोहम्मद मकबूल पंडित है, जो दो दशक पहले पाकिस्तान भाग गया था और अब वहीं रहता है। कहा जा रहा है कि वह बट के जरिए गिलानी को रकम पहुंचाने वाले नेटवर्क को संभालता है। 2007 में श्रीनगर जा रही एक टाटा सूमो की ऊधमपुर में तलाशी लेने पर सीएनजी सिलेंडर में छिपाकर रखे गए 46 लाख रुपये बरामद हुए थे। पूछताछ में पता चला था कि वह रकम बट ने दी थी और उसे श्रीनगर में इसे खुद लेकर गिलानी को सौंपना था। बट के ठिकाने पर छापा मारा गया था, लेकिन पता नहीं क्यों तब यह मामला आगे नहीं बढ़ सका। 2011 में बट को श्रीनगर में बेमिना बायपास पर रकम लेते रंगे हाथ पकड़ा गया था। उसके साथ मोहम्मद सिदीक गिनाई नाम का व्यक्ति भी था, जो 1990 के दशक में पाकिस्तान भाग गया था। गिनाई ने बाद में बताया कि उसे पाकिस्तान में आइएसआइ ने प्रशिक्षण दिया था। इनसे संबंधित एनआइए के आरोप पत्र में कहा गया है कि गिनाई और मकबूल ने मिलकर अलगाववादियों को रकम पहुंचाने का काम शुरू किया था।
यह 2007 और 2011 नहीं 2017 है। इस समय पूरे देश में हुर्रियत के खिलाफ वातावरण है और लोग कार्रवाई चाहते हैं। एनआइए जिस ढंग से आगे बढ़ रही है उससे लगता है कि पाकिस्तानी धन पर कश्मीर में हिंसा और अलगाववाद फैलाने वाले नेता बुरी तरह घिर चुके हैं। एनआइए का मतलब ही है आतंकवादी गतिविधियों के मामले में कार्रवाई। उसका गठन ही इसीलिए हुआ था। यह कोई सामान्य पुलिस कार्रवाई नही है जिससे इनके छूटने की संभावना बने। आतंकवादी संगठनों या आइएसआइ से धन लेकर हमारे देश में विघटकारी गतिविधियां चलाने वाले देशद्रोहियों की जगह जनता के बीच नहीं जेल है और वहीं सभी के जाने का आधार बन रहा है।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408,09811027208
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नगर निगम ने फरीदाबाद शहर को बना दिया कूड़े का ढेर – जसवंत पवार

वैसे तो फरीदाबाद शहर को अब स्मार्ट सीटी का दर्जा प्राप्त हो चूका है, परन्तु शहर के सड़कों पर गंदगी के ढेर फरीदाबाद प्रशासन और नगर को आइना दिखा रहे हैं
शहर के अलग अलग मुख्य चौराहों और सड़कों पर पढ़े कूड़े के ढेर को लेकर समाज सेवी जसवंत पवार ने फरीदाबाद प्रशासन और नगर निगम कमिश्नर से पूछा है कि एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी कहते हैं कि स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत मुहिम को पूरे देश में चला रहे हैं वही नगर निगम इस पर पानी फेरता दिख रहे हैं फरीदाबाद में आज सड़कों पर देखे तो गंदगी के ढेर लगे हुए हैं पूरे शहर को इन्होंने गंदगी का ढेर बना दिया है। जिसके चलते फरीदाबाद शहर अभी तक एक बार भी स्वछता सर्वेक्षण में अपनी कोई अहम् भूमिका अदा नहीं कर पा रहा, अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारा फरीदाबाद शहर स्वच्छता सर्वे में फिर से फिसड्डी आएगा। साल 2021 में स्वछता सर्वेक्षण 1 मार्च से 28 मार्च तक किया जाना है जिसको लेकर लगता नहीं की जिला प्रसाशन व फरीदाबाद के नेता और मंत्री फरीदाबाद शहर की स्वछता को लेकर बिल्कुल भी चिंतित दिखाई नहीं पढ़ते है।
जसवन्त पंवार ने फरीदाबाद वासियों से अनुरोध और निवेदन किया है अगर हमें अपना शहर स्वच्छ और सुंदर बनाना है तो हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे जहां पर भी गंदगी के ढेर हैं आप वीडियो बनाएं सेल्फी ले फोटो खींचे और नेताओं और प्रशासन तक उसे पहुंचाएं, हमें जागरूक होना होगा तभी जाकर यह फरीदाबाद शहर हमारा स्वच्छ बन पाएगा। आप हमें इस नंबर पर वीडियो और फोटो भेज सकते हैं
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क्यों हर दो महीने में आता है बिजली का बिल?

हम सभी अपने कुछ रोजमर्रा में प्रयोग होने वाली चीजों के बिलों का भुगतान हर महीने करते हैं। जैसे बैकों की किश्तंे, घर का किराया इत्यादि। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर फरमाया है कि जब हर चीज का भुगतान हम महीने दर महीने करते हैं। तो बिजली के बिल का ही भुगतान हर दो महीने में क्यों?
इस पर बिजली निगम का कहना है कि बिलिंग प्रक्रिया से जुड़ी एक लागत होती है। जिसमें मीटर रीड़िंग की लागत, कम्प्यूटरीकृत प्रणाली में रीडिंग फीड़ करने की लागत, बिल जेनरेशन की लागत, प्रिंटिग और बिलों को वितरित करने की लागत आदि चीजें शामिल होती हैं। इन लागतों को कम करने के लिए बिलिंग की जाती हैं। इसलिए बिजली बिल 2 महीने में आता है।
फिलहाल बिजली निगम 0-50 यूनिट तक 1.45 रूपये प्रति यूनिट, 51-100 यूनिट तक 2.60 रूपये प्रति यूनिट चार्ज करता है।
आप यह अनुमान लगाइए कि यदि किसी छोटे परिवार की यूनिट 50 से कम आती है। तो उसका चार्ज 1.45 रूपये प्रति यूनिट होगा लेकिन जब बिल दो महीने में जारी होगा। तो उसका 100 यूनिट से उपर बिल आएगा। मतलब साफ है कि उसे प्रति यूनिट चार्ज 2.60 रूपये देना होगा । ऐसे में उस गरीब को सरकार की छूट का लाभ नहीं मिला लेकिन सरकार ने पूरी वाह-वाही लूट ली।
आप यह बताइए जिस घर में सदस्य कम है। तो उस घर की बिजली खपत भी कम होगी और बिल भी कम ही आएगा। मतलब साफ है उपयोग कम तो यूनिट भी कम। यदि बिजली बिल एक महीने में आता है तभी ही तो जनता को इसका लाभ मिलेगा।
लेकिन चूंकि बिल दो महीने में आता है इसलिए गरीब को या छोटे परिवार को महंगी बिजली प्रयोग करनी पड़ रही है।
एक तरफ बिजली निगम अपना फायदा देख रहा है। तो दूसरी तरफ सरकार सस्ती बिजली की घोषणा करके, एक राजनीतिक मुद्द्ा बना कर, जनता की वाह-वाही लूट रही है। लेकिन जनता को लाभ मिल ही नहीं रहा क्योंकि सरकार तो दो महीने में लोगों को बिल दे रही हैं। इसलिए जब महीने में एक बार बिल आएगा तभी आम जनता को लाभ प्राप्त होगा। सरकार कब तक जनता को अपने घोषणाओं के जाल में फंसाती रहेगी? कब जनता को अपनी दी हुई पूंजी का सही लाभ प्राप्त होगा?
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क्यों राहुल गांधी बिना किसी बात के भी फंस जाते हैं?

आई ए एस अधिकारी टीना डाबी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर सोशल मीडिया में ट्रोल हो गए हैं। खबर बस इतनी है कि दलित समाज से आने वाली टीना मुस्लिम समाज से आने वाले अपने पति अतहर से तलाक ले रहीं हैं।
दिल्ली शहर की रहने वाली 24 वर्षीय टीना डाबी जो 2015 की सिविल परीक्षा में टाॅप करके आई ए एस अधिकारी बनी थी। उन्होंने कश्मीर के मटट्न नामक शहर में रहने वाले अतहर खान से शादी कर ली जो उसी परीक्षा में दूसरे स्थान पर था।
टीना पहली दलित महिला थी जिसने यूपीएससी की परीक्षा में टाॅप किया था।
टीना और अतहर की शादीशुदा जोड़ी को उनके विवाह के दौरान जय भीम और जय मीम की एकता, मुस्लमान और दलितों के बीच में सबधों की मिसाल बताया गया था। उस समय राहुल गांधी ने स्वंय अपने ट्वीटर अकांउट से ट्वीट करते हुए कहा था कि ये जोड़ी मिसाल कायम करेगी। यह हिंदू, मुस्लमानों की एकता का प्रतीक है।
लेकिन आपसी मतभेदों के कारण जयपुर के पारिवारिक न्यायालय में इस जोड़ी ने तलाक की अर्जी दाखिल की है। अब ये जोड़ी तलाक ले रही हैं और लोग राहुल गांधी को लानत दे रहे हैं ‘दिख गई सहजता। दिखा लिया भाईचारा।।‘
आज कांग्रेस की जो हालत है या राहुल गांधी की जो हालत है वो इस वजह से है क्योंकि राहुल ने हर मुद्दे में केवल जाति व धर्म का एंगल खोजा और उसका तुष्टीकरण किया। उन्होंने सर्व समाज से बातें करने में हमेशा परहेज किया। केवल धर्म और जातियों में खास दृष्टिकोण खोजते रहे।
अब तक देखने में आया है कि घटना किसी दलित के साथ हुई है तो वह एक्शन लंेगे और यदि वह दलित कांग्रेस शासित राज्य में है तो एक्शन नहीं लेंगे। उसी प्रकार कोई घटना मुस्लिम के साथ है तो वह आवाज उठाएंगे और यदि वह मुस्लिम अपने शासित राज्य में है तो वो आवाज दबा दंेगे।
इसी कारण से कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि लोग उन्हें धर्म और जाति का मुद्दा उठते ही लोग लानत देने लगते हैं।